habits, मैं निकल चला हूं

मैं निकल चला हूं

खुद की तलाश में अपनी पहचान में, भीड़ को पीछे छोड़, में निकल चला हूं। लोगों की छोटी सोच से, समाज के दिए चोट से, अपनों के तानों के शोर से, मैं निकल चला हूं। To Read my other Poem. Click here! अपने सवालों की खोज में, सही और ग़लत के फर्क से, मंजिल से अनजान,…