MEHNAT
ज़मीन बंजर ही होती है,
खाद और पसीने से,
उसको सिचा जाता है,
तो हरियाली होती है।
सपने सिर्फ देखा नहीं करते,
मेहनत भी करनी होती है।
कौन हो तुम, पूछने की
किसको फ़ुरसत है।
तुम क्यों ही,
बोलना पड़ता है।
नाम जहां नहीं बोलता,
वाहा काम बोलता है।
सबको आगे जाना है,
पता नहीं कहां जाना है,
हर मुमकिन कोशिश करनी है,
मंज़िल से पहले,
सांस नहीं रुकनी है।
सोचता हूं, सपने क्या पूरे होंगे?
क्या हम, काबिल होंगे।
परेशान देख, मेहनत बोला,
सब तेरे ही हाथ में है,
सब कुछ और ,
कुछ भी नहीं।